मोतिहारी के विवेक का ISRO में बतौर साइंटिस्ट हुआ चयन

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मोतिहारी। नकुल कुमार
मोतिहारी। मोतिहारी के रहने वाले विवेक श्रीवास्तव का चयन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO-Indian Space Research Organisation) में बतौर साइंटिस्ट हुआ है उन्होंने पूरे देश में 24 वां स्थान प्राप्त किया है। ग्रुप ए के अंतर्गत इनका राजपत्रित पद है।
Vivek shrivtastav मूल रूप से पूर्वी चंपारण के चिरैया थानांतर्गत सरौगढ़ के दिवंगत अधिवक्ता अभय कुमार श्रीवास्तव व पूनम देवी के पुत्र और सेवानिवृत्त सैनिक रामचन्द्र श्रीवास्तव के पौत्र हैं। वर्तमान समय में मोतिहारी के अंबिका नगर में रहते है।
ISRO में बतौर साइंटिस्ट पूरे देश में उन्हें 24 स्थान प्राप्त करने वाले विवेक श्रीवास्तव की स्कूली शिक्षा मोतिहारी के ही एक निजी शिक्षण संस्थान से हुई है। उसके बाद उन्होंने 2018 में NIT कुरुक्षेत्र से इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कम्यूनिकेशन से बीटेक किया है। फिलहाल अभी रेलवे में जॉब कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने ISRO क्वालीफाई किया।
विवेक श्रीवास्तव की जीवन यात्रा भी बड़ी उथल-पुथल वाली रही है। उनकी अभी स्कूली शिक्षा पूरी भी नहीं हुई थी कि  प्रकृति ने उनके साथ क्रूर मजाक किया एवं महज़ 9 साल की उम्र में सर से पिता का साया उठ गया। जिसके बाद उनके सेवानिवृत्त दादाजी ने उन्हें बेटे की तरह लाड-प्यार देकर जीवन के तूफान में एक-एक पग बढ़ाना सिखाया।
उन्होंने बताया कि उनका हमेशा से यही सपना था कि टेक्निकल फील्ड में वे देश की सेवा करें एवं अपने क्षेत्र का नाम रोशन करें। इसरो के लिए उनका यह पहला प्रयास था। इसके लिए लगातार प्रयास करते रहे। इस दौरान उन्होंने रेलवे क्वालीफाई किया एवं जॉब करने लगे।
आंखों में इसरो में जाने का जो ख्वाब था। वह ख्वाब रेलवे में जॉब लगने के बावजूद श्री विवेक को सोने नहीं देता था। यही कारण है कि वो रेलवे में जॉब करने के साथ-साथ समय निकालकर जी तोड़ मेहनत करते थे ताकि वे भारत के सबसे प्रतिष्ठित टेक्निकल संगठन से जुड़कर अपने सपनों को उड़ान दे सके।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं को संदेश में श्री विवेक कहते हैं कि असफलता से कभी घबराना नहीं चाहिए बल्कि ध्यान हमेशा अपने लक्ष्य का होना चाहिए एवं फल की चिंता किए बगैर निरंतर प्रयास जारी रखना चाहिए।
उनका कहना है कि यदि आप असफल होते हैं तो अपनी असफलता को अपनी प्रेरणा बनाकर, अगली बार उससे भी ज्यादा मेहनत लगन दृढ़ इच्छाशक्ति से करना चाहिए। कभी भी हताश व निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि मेहनत का फल थोड़ा देर से भले ही मिलता है लेकिन जब मिलता है तो फिर उस जैसा कुछ नहीं होता है।
बता दें कि अपने दादा को अपना आदर्श व अपने बड़े भाई विकास श्रीवास्तव को अपना मार्गदर्शक मानने वाले विवेक अपनी सफलता का श्रेय अपने शिक्षकों व मित्रों को देते हैं।

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