शोधार्थियों को कम्प्यूटर और अंग्रजी की समझ होना आवश्यक : प्रो. श्रीवास्तव

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मोतिहारी। राजनीति विज्ञान विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सहयोग से आयोजित शोध प्रविधि पाठ्यक्रम का समापन गुरुवार को हुआ।
पैतिसवें तकनीकी सत्र में जवाहरलाल नेहरू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के प्रो० संजय कुमार भारद्वाज ने अकादमिक अनुसंधान एवं सामाजिक विज्ञान में शोध लेखन पर प्रतिभागियों से बात की। प्रो० भारद्वाज ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शोध पत्र लेखन के लिए आवश्यक है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में शोध केंद्रित वातावरण का निर्माण किया जाए।
किसी भी अच्छे शोध लेखन के लिए पांच प्रमुख बिंदु अनुसंधान विषय का चयन, सहयोगात्मक अनुसंधान, तर्कशील चिंतन, अनुसंधान वार्ता एवं कलात्मक अभियोग्यता का समावेश आवश्यक है।
सत्र के अध्यक्ष संबोधन में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो० सुनील महावर ने कहा कि तर्कशील चिंतन एक उच्च कोटि के शोध लेखन के लिए अत्यंत आवश्यक है। सत्र के विषय विशेषज्ञ द्वारा अकादमिक लेखन के विभिन्न पक्षों पर जो विस्तृत वार्ता की गई उससे प्रतिभागियों को भविष्य में अत्यंत लाभ मिलेगा।
छत्तीसवें तकनीकी सत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सांख्यिकी विभाग के प्रो० जी० पी० सिंह ने पी टेस्ट एवं काई स्क्वायर टेस्ट के माध्यम से संकलित तथ्यों के विश्लेषण पर प्रतिभागियों से चर्चा की। प्रो० सिंह ने कहा कि सांख्यिकी उपकरणों के द्वारा प्रतिचयन के माध्यम से पूरे समूह के बारे में निष्कर्ष निकाला जा सकता है। मार्जिन का एरर जितना कम रहेगा अनुसंधान का प्रतिवेदन उतना ही सटीक होगा।
सैंतीसवें तकनीकी सत्र में चर्चा को जारी रखते हुए प्रोफेसर सिंह ने विभिन्न प्रकार के संग्रहित तथ्य के विश्लेषण एवं सारणी करण हेतु एस० पी० एस० एस० सॉफ्टवेयर के उपयोग के बारे में प्रतिभागियों को बताया। किसी भी डाटा के विश्लेषण में मध्य माध्यम एवं माध्यमिक की उपयोगिता पर विशेष चर्चा की गई।
अड़तिसवें सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ० सरिता तिवारी ने प्रो० सिंह को धन्यवाद देते हुए कहा कि एस०पी०एस०एस के उपयोग से संकलित तथ्यों का बहुआयामी उपयोग शोधार्थियों के द्वारा किया जा सकता है। इससे शोधार्थियों के समय की बचत होती है एवं शोध प्रतिवेदन में त्रुटियों की संभावना अत्यंत कम होती है।
आदि में तकनीकी सत्र में विषय विशेषज्ञ टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस के पटना केंद्र केअध्यक्ष पुष्पेंद्र कुमार सिंह ने विभिन्न शोध आलेखों के प्रस्तुतीकरण एवं प्रकाशन पर प्रतिभागियों से चर्चा की। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि किसी भी शोध पत्र को कम से कम दो बार पढ़ा जाना चाहिए। शुद्ध आलेखों में शोध प्रश्न स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने चाहिए। प्रश्नों के महत्ता वर्तमान समय में स्थापित होनी चाहिए।
समापन सत्र की अध्यक्षता महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के कुलपति प्रो० संजय श्रीवास्तव ने की। इस दौरान कुलपति ने कहा कि समाजिक वैज्ञानिकों के कंधे पर बड़ा भार है कि रिसर्च को बेहतर बनाएँ ।ज्ञान के अर्जन करने का यही समय है ।
उन्होंने प्रतिभागियों से चर्चा करते हुए कहा कि भारत के सरकारी विश्वविद्यालय में सबसे सस्ती पढ़ाई उपलब्ध होती है। शोधार्थियों को कम्प्यूटर की स्किल की समझ एवं अंग्रेज़ी बातचीत करने का ज्ञान होना चाहिए। इससे आप बाहर के विद्वानों से संचार कर सकते हैं।
शोधार्थी अपने अकादमिक नेटवर्क को आगे बढ़ाएँ एवं अपने विषय विशेषज्ञ के सम्पर्क में रहें । आपका काम ऐसा हो कि लोग भी तारीफ करे। आपकी महत्वाकांक्षा आपसे काम कराते रहेगी। समाज, परिवार और राष्ट्र के बारे में सोचें।
मुख्य अतिथि के रुप में वरिष्ठ पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता के० के० ओझा की उपस्थिति रही। श्री ओझा ने बताया शोध प्रविधि एक प्रज्ञा यज्ञ है । कई प्रज्ञावान लोगों ने आपको सहयोग किया । शोध का बेहतर प्रतिमान गांधी जी ने किसानों से समस्याओं पर बात करते समय प्रस्तुत किया।
पहले से मौजूद ज्ञान को युगनुकूल बना देना ही शोध है ।
मुख्य वक्ता के रूप में इस सत्र में केंद्रीय विश्वविद्यालय, हरियाणा की प्रति कुलपति प्रो० सुषमा यादव ने अपना वक्तव्य दिया। प्रो. यादव ने कहा कि जिसने श्रम किया है उसे श्रेय भी मिलना चाहिए। शोध आलेखों को ग़लत तरीक़े से छापना नही चाहिए । शोध उपयोगी और सार्थक होना चाहिए। शोध का सौंदय इसमें है की आप सरलता के साथ अपनी बात समाज तक पहुँचा सकें। राष्ट्र और समाज को आपके शोध से लाभ होना चाहिए।
विशिष्ठ अतिथि जेपी विश्वविद्यालय, छपरा के प्रो० सरोज वर्मा ने कहा फ़ीड्बैक लेना आवश्यक है। प्रभावशाली ढंग से बातों को रखना सेमिनार एवं ऐसे आयोजनों के माध्यम से सीखा जा जा सकता है। आगे भी इस तरह के आयोजन होते रहने चहिए एवं शोधार्थियों का लगन देखने लायक़ था।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो० जी पी सिंह ने कहा कि जब भी पढ़ें ये न मान लें कि आपको समझ आ गया है।दूसरी बार पढ़ने में पर्सेप्शन चेंज मिलेगा । शोधार्थियों को अंग्रेज़ी को धेर्य रखके पढ़ना चहिए। अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र पढ़ें और कभी गाइड न पढ़ें , टेक्स्ट बुक पढ़ें।ट्रेनिंग जहां भी मिले ज़रूर कीजिए।
इस सत्र में प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। पाठ्यक्रम के संरक्षक प्रो. सुनील महावर
ने प्रतभागियों से कहा कि आप यहाँ से हमारे दूत बनकर जाएँ और अच्छी यादें लेकर जाएँ। हमने सीमित संसाधनों में अच्छा काम करने का प्रयास किया।
इस पाठ्यक्रम के निर्देशक महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के सह आचार्य डॉ नरेंद्र कुमार आर्य ने पूरे पाठ्यक्रम की एक समीक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस पाठ्यक्रम के सह निर्देशक महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉक्टर नरेंद्र सिंह ने कहा कि पूरे पाठ्यक्रम में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आए प्रतिभागियों को अनुसंधान के सैद्धांतिक एवं प्रायोगिक ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस अनुसंधान पाठ्यक्रम का उद्देश्य शोधकर्ताओं के शोध को नवीन दिशा प्रदान करना था।
अन्त में डॉ. नरेंद्र सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन में इस दस दिवसीय शोध प्रविधि पाठ्यक्रम के सभी प्रतिभागियो , पाठ्यक्रम के मुख्य संरक्षक माननीय कुलपति प्रो संजय श्रीवास्तव, मुख्य अतिथि श्री के० के० ओझा,मुख्य वक्ता प्रो० सुषमा यादव, विशिष्ठ अतिथि प्रो० सरोज वर्मा एवं प्रो० जी पी सिंह को धन्यवाद एवं आभार ज्ञापित किया।
इसके साथ ही उन्होंने उद्घाटन सत्र एवं समापन सत्र के अतिथियों और सभी तकनीकि सत्रों के अध्यक्ष, विषय विषेषज्ञ एवं समन्वयकों को उनके सहयोग एवं प्रतिभाग का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित किया।कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रो. प्रणवीर सिंह, डॉ. साकेत रमन, डॉ. अनुपम वर्मा, डॉ. राम लाल बघेरिया, डॉ. उमेश तलवार, डॉ. पंकज कुमार सिंहके साथ आशुतोष,गौरव,निखिल,मनीष,सर्वेश्वर, उज्ज्वल,देवाशीस,संदीप,ऋचा,विजय,कौशल,सुजीत,सचिन,अफसाना की उपस्थिति रही।

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